Wednesday, November 11, 2009

Thematic Mind Repertory

Delusions; animals abdomen, are in: croc 162, falco-p 265, oxyg 233, spect. 271, thuj 2058
Delusions; voices, hears, abdomen, are in his: thuj 2058
Dreams; body, abdomen, cut, a big cut in: ozone 227
Dreams; body, abdomen, cut, a big cut in, blood and pus, under which amounts of: ozone 227
Dreams; body, abdomen, cut, a big cut in, tumor, under which grows a: ozone 227
Dreams; body, abdomen, painful: apis 36, choc 222
Dreams; body, abdomen, covered with warts and ulcers: choc 222, junc 36
Dreams; body, abdomen, wind-colic: fago 36
Fear; abdomen, arising from: asaf.
Thoughts; abdomen, as if from : thuj 5
NIT-AC:Al,30- Anxious oppression, like nightmare, as if some one were lying under him and holding him fast with the arms about his abdomen, so that he could not free himself, immediately after falling asleep. (constriction, immobilization)
Abortion
see: Blood, Death, Disease, Fit, Fragile
Anguish; abortion, in threatening: cham 54
Delusions; womb is soft and feeble and would cause abortion: abies-c 85
Dreams; abortion: ign 36, m-arct 5
Dreams; abortion, efforts and plans: ign 36
Fear; abortion, in threatening: bell 26, cimic 54, kali-c 26, op 54, sabin 54
Fear; death, abortion, abort, is sure she will: nux-m 26
Fear; death, abortion, die from hemorrhage, is sure she will: acon 26
Fear; death, abortion, in: acon 26, apis 26, coff 54, gels 26, kali-c 26, nux-m 26, sec 26, stram 26
Suicidal disposition; abortion, in threatening: aur 26
Talk; indisposed, abortion, in threatening: nit-ac 26
ACON:He,51- Ailments from fright: afraid (fear) in dark; vertigo; faintness; trembling; cardiac weakness; threatened miscarriage (abortion); impending cessation of menstrual flow;..
GELS:He,30- Bad effects (ailments) from suddenly hearing bad news; from fright(fear); diarrhea, abortion etc.
Abroad
see: Distances, Fly, Home, Homesickness, Liberty, Nostalgia, Stranger, Travel
Confusion of mind; country, as if now in one, now in another: chlol 36
Delirium; loquacious, foreign countries, of : cann-i 2058
Delusions; abroad, being: verat 30
Delusions; man, talking in foreign languages : stram

Homoeopathy: False or Truth

होम्योपैथी: मिथ्य और सच्चाई

होम्योपैथी एक उत्तम चिकित्सा प्रणाली है जिस में उन बिमारियों का भी इलाज किया जा सकता है जो आध्ुनिक मैडीकल साईंस करने में असमर्थ रहती है। जरुरत है कि मरीज अपनी बीमारी को पूरी तरह ब्यान करे और डाक्टर अच्छी तरह जांच पड़ताल करके उसके लिए एक दवाई का चुनाव करे जो उसके मानसिक लक्षणों को भी महत्ता दे। होम्योपैथी प्रणाली के बारे काफी गल्त धरणाएं प्रचलित हैं। आज उन अलग अलग धरणाओं पर विचार करेंगे और क्या सच्चाई है, यह जानने की कोशिश करेंगे।

1. सब से पहली धरणा तो यह है कि होम्योपैथी धीरे-ध्ीरे असर करती है। अक्सर मरीज कहते हैं कि हम होम्योपैथी इस लिए नहीं लेते क्योंकि इस का असर बहुत देर बार होता है।

सच्चाई: यह धरणा बिल्कुल गलत है। यदि मरीज
Acute [rqjar] अभी हुई बीमारी से पीड़ित होकर आया है तो एक ही पुड़ी उस को रोग मुक्त कर सकती है। बुखार, खांसी, फोड़े फिंसीयों के केसों में हम बहुत बार देखते हैं कि सिर्फ एक ही दवाई 2-3 दिन खाने से मरीज ठीक हो जाता है। पर यदि हमारे पास मरीज ही अपनी बीमारी की आखरी सटेज पर आता है ;जो कि अक्सर देखने में आता हैद्ध और होम्योपैथी को सिर्फ परखने की कोशिश करता है कि बाकी दवाईयां तो बहुत खा ली हैं, चलो होम्योपैथी भी लेकर देख लें, तो यह कैसे सोचा जा सकता है कि इतने वर्ष तो बाकी दवाईयां खा-खा कर शरीर में उन दवाईयों ने घर कर लिया और अब होम्योपैथी की एक पुड़ी जादू दिखा दे। यदि बीमारी पुरानी है तो कुछ समय देना पड़ेगा, होम्योपैथी के ईलाज के लिए। पर इस में भी हमने देखा है कि पुरानी बीमारियों में भी कई बार तुरंत आराम मिल जाता है।

2. होम्योपैथी को एक ऐसी चिकित्सा प्रणाली माना जाता है जिस में सिर्फ पुरानी और लम्बे समय से चली आ रही बीमारियों का इलाज किया जाता है।
सच्चाई: यह धरणा बिल्कुल गलत है। इस में हरेक बीमारी यदि वह नई हो ;भाव थोड़े समय से उत्पन्न हुई होद्ध या पुरानी हो, दोनों का ही ईलाज सम्भव है। बल्कि जितनी बीमारी पुरानी होती है, उस का ईलाज उतना लम्बा हो सकता है और जितनी नई उतना ईलाज भी आसान होता है और मरीज कुछ दिनों में ही ठीक हो जाता है।

3. होम्योपैथी के बारे में यह धरणा प्रचलित है कि यह सिर्फ मीठी-मीठी छोटी गोलियां हैं जो छोटे मोटे रोग बुखार, जुखाम, खांसी आदि ही ठीक कर सकती हैं। सच्चाई: यह धरणा भी बिल्कुल गलत है। कौन कहता है कि बड़ी बीमारियों का ईलाज होम्योपैथी में नहीं है। यदि हम आज इंटरनैट पर ढूंढें तो बहुत डाक्टरों ने उन बीमारियों के ईलाज करके अपनी वैबसाईट पर केस डाले हुए हैं जिन के बारे मार्डन साईंस के पास कोई ईलाज नहीं है। आओ अपनी सोच को आगे बढ़ाएं, बात दरअसल यह है कि हम यह सोच नहीं सकते कि होम्योपैथी दिल, जिगर और गुर्दों आदि के भयानक रोग भी ठीक कर सकती है। फर्क हमारी सोच का है। कमी सिसटम में नहीं, हमारी सोच में है। यदि किसी बीमारी के ईलाज मार्डन साईंस के पास नहीं तो होम्योपैथी को अपनाओ। एक बढ़िया तरीके से ईलाज करवाओ, इस को परखो मत। पूरे विश्वास से दवाई लो।

4. कई मरीज यह समझते हैं कि वह होम्योपैथी इस लिए नहीं लेते क्यों इस में खाने-पीने पर बहुत बंदिशें लग जाती हैं।
सच्चाई: यह धरणा भी बिल्कुल गलत है। बहुत नई-नई खोजें हो रही हैं। जब हम मानसिक लक्षण लेकर मरीज को दवाई देते हैं तो हम कभी भी कोई भी प्रहेज नहीं बताते। देखना सिर्फ यह होता है कि अगर मरीज किसी खास वस्तु से अलर्जी है या किसी खास चीज के प्रति संवेदनशील है तो वह मरीज उस वस्तु को न ले। यह बिलकुल गलत है कि हरेक मरीज प्याज, लहसन, सौंफ, कौफी या ज्यादा तेज पदार्थ न ले। सिर्फ वह वस्तु बंद की जाती है जिस के लिए मरीज संवेदनशील है या जिस चीज से उसको अलर्जी होती है या जिस चीज से मरीज की तकलीफ बढ़ती है जैसे शूगर के मरीजों के मीठी चीजों का प्रहेज करना। मैंने तो अपने 25 वर्षाें के तजुर्बे में यही देखा है कि जब दवाई का चुनाव सही होता है तो वह हर हालत में असर करती ही करती है। यहां एक बात ओर महत्वपूर्ण बताने योग्य है कि जिस चीज से कोई दवाई बनी होती है, उस दवाई के सेवन में वह चीज भौतिक रुप में लेनी बंद की जाती है। जैसे यदि कोई प्याज या लहसन से या हिंग से बनी है तो उसी खास दवाई से वह चीज बंद की जाती है क्योंकि जब होम्योपैथी दवाई बनाई जाती हैं तो इन में मूल तत्व के बहुत कम या नामातर ही अंश रह जाते हैं। इसी लिए यह पोटैंटईज होती हैं और
Dynamic रुप में असर करती मानी जाती हैं।

5. माना जाता है कि होम्योपैथी में ईलाज बहुत लम्बा होता
: यह धरणा बिलकुल गलत है। पहले पहरे में विस्तार पूर्वक बताया जा चुका है कि ईलाज लम्बा नहीं होता। यदि थोड़े समय की बीमारी है तो इस को कम समय लगेगा और यदि मरीज सब तरफ से दवाई खाकर थक कर आया है तो उस का ईलाज लम्बा हो सकता है। यहां यह बात बतानी बहुत महत्वपुर्ण है कि हम अंग्रेजी दवाई तो सारी उम्र खाते रहते हैं, वहां ईलाज लम्बा नहीं लगता और यदि होम्योपैथी कुछ महीने खानी पड़ जाए, जहां ईलाज में मरीज का बीमारी से मुक्त होना सम्भव है, वह मुश्किल लगती है। बड़ी हैरानी और दुख होता है जब आम लोगों में यह धरणा पाई जाती है कि होम्योपैथी को पूरी तरह समझते नहीं।

6. अक्सर मरीज सोचते हैं कि यदि हम होम्योपैथी ईलाज शुरु करेंगे तो अंग्रेजी दवाईयां बंद करनी पड़ेंगी।
सच्चाई: यह धरणा भी गलत है। कई होम्योपैथी डाक्टर भी ऐसे हैं जो मरीज की अंग्रेजी दवाई जो वह कई वर्षों से खा रहा है, एक दम बंद कर देते हैं। बल्ड प्रैश्र, शूगर, थइराइड, मिरगी और कई ऐसी बीमारियां हैं, जिनकी दवाई तुरंत बंद नहीं की जा सकती। यदि हम यह दवाई एक दम बंद कर देंगे तो मरीज का शरीर जो इन दवाईयों से ठीक रहता है, एक दम इन बीमारियों को उभार देगा जो कि मरीज के लिए भी खतरनाक है और होम्योपैथी सिस्टम के लिए भी। पहले एक सही होम्योपैथिक दवाई का चुनाव करो, जब आपको लगे कि मरीज का बल्ड प्रैश्र या शूगर या और बीमारियां थोड़ा ठीक होने की तरफ जा रही हैं तो अंग्रेजी दवाई को कम करके बंद करो। एक ही दिन सब कुछ बंद नहीं करना चाहिए। ऐसा करने से मरीज ध्ीरे ध्ीरे होम्योपैथी को अपनाने लगेगा। उसका शरीर होम्योपैथी को अपनाने लग जाएगा और दूसरी दवाईयों को छोड़ना उसके लिए आसान हो जाएगा। एक और महत्वपूर्ण बात यह है कि कोई भी अंग्रेजी दवाई, होम्योपैथी के साथ ली जा सकती है। यह नहीं होता कि अब अंग्रेजी दवाई ली है और होम्योपैथी का असर खत्म हो गया। अंग्रेजी दवाईयां भौतिक स्तर पर काम करती हैं जिनका असर कुछ समय के लिए ही होता है, होम्योपैथी दवाईयां कलदंउपब रुप में काम करती हैं, जिनका असर कई कई हफते, महीने और वर्षों रहता है।

7. अकसर लोगों को यह कहते सुना है कि होम्योपैथी में टैस्टों की कोई जरुरत नहीं।
सच्चाई: यह धरणा बिलकुल गलत है। जी नहीं, हमें भी टैस्टों की उतनी ही जरुरत है जितनी कि मार्डन साइंस को। मान लो किसी मरीज के शरीर के किसी हिस्से में कोई रसौली या पत्थरी है या उस का बल्ड प्रैश्र बढ़ता है या उसकी शूगर बढ़ती है, यदि उसका हमें माप या साईज पता नहीं होगा तो हम यह कैसे बता सकेंगे कि क्या उसका ईलाज होम्योपैथी में सम्भव है या नहीं या उसके ईलाज को कितना समय लग सकता है या क्या आपरेशन ही इसका एक ही इलाज है या मरीज की हालत बहुत गम्भीर है और उसकी जिन्दगी का प्रश्न है। टैस्ट करवाने से हमें मरीज की बीमारी की तीबरता का पता लगता है। हमें बीमारी के नाम के बारे जानने की इतनी जरुरत नहीं होती परन्तु वह बीमारी कितनी बढ़ चुकी है, यह जानने के लिए टैस्ट करवाने बहुत जरुरी हैं।

8. एक और धरणा कि होम्योपैथी पहले बीमारी को बाहर निकालती है और फिर ठीक करती है।
सच्चाई: यह धरणा भी गलत है। होम्योपैथी में बीमारी का बढ़ना एक अच्छा लक्षण माना जाता है पर कितना बढ़ जाना, ऐसे न हो कि मरीज का बुरा हाल ही हो जाए। यदि मरीज की बीमारी बढ़ती भी है पर उसको अंदरुनी मानसिक तौर पर उसकी पीड़ा कम होनी चाहिए। यह माना जाता है कि हमारे शरीर के अन्दर कुछ जहरीला मादा धीरे ध्ीरे जमा होता जाता है जो बढ़ बढ़ कर एक बीमारी का रुप धरण कर जाता है। जब एक सही दवाई का चुनाव होता है तो यह गन्दा मादा [expulsions] के रुप में बाहर निकलना शुरु हो जाता है। मरीज को शौच, उल्टियां, जुकाम, रेशा, गुस्सा बढ़ जाना आदि किसी भी बाहरमुखी द्वार के द्वारा यह मादा बाहर निकलना शुरु हो जाता है। यह कुछ दिनों बाद ठीक हो जाता है पर इन दिनों में मरीज मानसिक रुप में पहले से अच्छा महसूस करता है। यदि मरीज की बीमारी बहुत बढ़ जाती है तो इसका यह भी मतलब है कि दवाई का चुनाव सही नहीं हुआ या दवाई का बीमारी पर असर नहीं हुआ या एक और लक्षण भी हो सकता है कि दवाई की ताकत बहुत हल्की या ज्यादा दी गई।

9. एक बहुत ही महत्वपूर्ण गलत धरण है कि होम्योपैथी में सटीराईड [steroids] इस्तेमाल किया जाता
: यह धरणा तो बिलकुल गलत है। पहली बात तो यह है कि होम्योपैथी में कोई भी सटीराईड नहीं होते। दूसरी बात यह कि मरीज तो हमारे पास पहले से ही इतनी ताकतवर
Antibiotics और steroids खाकर आए होते हैं और हम उनको सटीराईड क्या दें। यहां साथ ही मैं एक चेतावनी भी देना चाहती हूं कि जो डाक्टर कई कई दवाईयां मिला कर, पीस कर बड़ी बड़ी पुड़ियां बना कर देते है, उनसे सावधन रहें।

10. यह धरणा कि होम्योपैथी सिर्फ छोटी छोटी मीठी गोलियों की चिकितसा प्रणाली है जिस को लोगों ने पलैसीबो थिरैपी का नाम भी दिया है क्योंकि वैज्ञानिकों ने किसी भी दवाई की 12ब् या 24ग ताकत के बाद दवाई के भौतिक तत्व नहीं ढूंढते।
सच्चाई: यह धरणा बिलकुल गलत है कि यह एक पलैसिबो थिरैपी है। पर साथ ही यह भी एक सच्चाई है कि वैज्ञानिकों को किसी भी दवाई की 12c या 24x ताकत के बाद दवाई के भौतिक तत्व नहीं मिलते। दुनियां भर के सब होम्योपैथिक डाक्टरों का मानना है कि जैसे जैसे दवाई की ताकत बढ़ती है, चाहे उस में भौतिक तत्व और कम हो जाते हैं, पर उस की मरीज को ठीक करने की ताकत और बढ़ जाती है। यह एक बार नहीं, सौ बार भी नहीं, हजार बार नहीं, बल्कि लाखों करोड़ों बार बार-बार अजमाया जा चुका है। यदि यह पलैसिबों थिरैपी होती तो इस का असर छोटे बच्चों और जानवरों पर कैसे होता? रसौलियां, पत्थरियां, भौरियां पर कैसे होता? होम्योपैथी जानवरों के केसों पर बहुत लाभदायक सि( हुई है। शायद अभी वैज्ञानिक इतनी ज्यादा खोज करने में असमर्थ हैं, पर आने वाले समय में इन धरणाओं द्वारा ही प्रमाणित किया जाएगा। उस समय इस प्रणाली को पलैसिबो थिरैपी नहीं माना जाएगा बल्कि मार्डन सिस्टम के बराबर माना जाएगा।

11. एक और धरणा कि होम्योपैथी के गलत असर [side effect] नहीं होते।
सच्चाई: यह धरणा भी गलत है। कौन कहता है कि कोई भी चीज जो हमारे शरीर के अंदर जाती है, कोई भी असर नहीं करती। यह क्यों माना जाता है इस के गलत असर नहीं होते। क्यों आज तक यह उन लोगों के हाथों में रही, जिन्होंने सिर्फ इसको शौंक के तौर पर अपनाया। अकसर देखा गया है कि होम्योपैथी को लोगों ने एक काम के तौर पर नहीं बल्कि लोगों की सेवा और मनोरंजन के लिए अपनाया। कुछ किताबें पढ़ीं और 2-4 शीशी दे दीं। चाहे इस का असर सीध्े तौर पर गलत असर कम होता है पर डा. हैनीमैन के समय से यह किताबों में लिखा हुआ है कि यदि यह दवाईयां बिना किसी बीमारी के हर रोज ली जाएं तो कुछ समय बाद यह उस इनसान के अन्दर अपने लक्षण पैदा कर देती हैं। मनुष्य के शरीर में जो दवाई बार बार, बिना डाक्टर की सलाह से ली जाए, उस का कोई न कोई गलत असर जरुर हो सकता है। आज के समय में हमारे डाक्टर एम.डी. की डिगरी कर रहे हैं, और बड़ी योग्यताएं प्राप्त कर रहे हैं और साथ में यह भी प्रचार करते हैं कि दवाई का इस्तेमाल हल्की मात्रा के अनुसार ही करना चाहिए। पूरे पंजाब में क्या, पूरे देश भर में यह लहर चल रही है कि एक ही सही दवाई का चुनाव करो और उसको हल्की मात्रा में दो ताकि बाद में कोई भी गम्भीर प्रणाम न भुगतना पड़े।

मेरा यह लेख लिखने का उद्देश्य पाठकों के मनों में होम्योपैथी से जुड़े भ्रम दूर करना था और मैं उम्मीद करतa हूं कि मेरा यह सन्देश आम जन साधरण तक जरुर पहुंचेगा और होम्योपैथी को और आगे लेकर जाएगा। होम्योपैथी को छोटी मीठी गोलियों वाली पलैसिबो चिकित्सा प्रणाली न समझें, इसको अपनाओ और गम्भीर से गम्भीर बीमारी से मुक्ति पाओ। होम्योपैथी एक खजाना है जो अपने अन्दर बहुत कुछ करने की ताकत रखता है। आओ हम इस
खजाने को ढूंढें और अपनाएं।

Friday, October 9, 2009

टी0वी0 एक खुराक में ठीक

टी0वी0 एक खुराक में ठीक एक रोगी जिसे दिन के समय बुखार आता था और दिनों-दिन जिसका वजन गिर रहा था, एक मेरे पुराने रोगी का रिश्तेदार था, जिससे मिलने के बाद रोगी ने कहा कि देखिए ना, मुझे लगता है कि किसी ने मेरे पर जादू कर दिया है, एक दिन किसी ने मेरे घर में ताबीज पफेंक भी दिया और उसी दिन से मेरा शरीर गल रहा है । तब मेरे पुराने रोगी ने कहा कि आप मेरे साथ मेरे डाक्टर साहब के पास चलिए वो ठीक कर देंगे । उक्त वक्तव्य के साथ रोगी अपने रिश्तेदार के साथ क्लिनिक में आते ही बताये । मैंने रोगी को चेक किया एवं Anti-tubercular test लिख दिया और रोगी को Stramonium-30/1 एक खुराक खिला दिया । अगली बार रोगी Test Report लेकर आया, जिसको देखने के बाद पता चला किReport-Positive था यानि रोगी को Tubercularsis हो चूँका था । मैंने रोगी से पूछा-क्या हाल है रोगी ने कहा-डाúसाहब, आपकी एक खुराक दवा ने कमाल कर दिया है, अब मैं अच्छा महसूस कर रहा हूँ और डाक्टर साहब मैंने अपना वजन भी चेक किया हूँ-1) किलो वजन भी बढ़ गया है । मैंने रोगी से कहा-बहुत अच्छा है, पहले वाली दवा लगातार समय से खाते रहिए । रोगी बीच-बीच में 3-4 बार आकर ठीक होने की रिपोर्ट देता है और SL के साथ Continue करते रहा । एक महीने के बाद पिफर Anti-Tubercular test कराने को बोला, रोगी जब रिपोर्ट लेकर आया तो रिपोर्ट देखकर मैं दंग रह गया क्योंकि रिपोर्ट Nigative था ।Tuberculosis जैसे रोग में इतनी जल्दी रोग मुक्त होना, इसे होमियोपैथी की अद्भूत उपलब्ध् िनहीं तो और क्या कहेंगे ? इस केस में निम्न रूबरिक लिये गये थे ।

1. Delusion-injured, about to recieve is

2. Fear, injured of being

3. Superstitious

4. Delusion, House, surrounded, house is.

Friday, October 2, 2009

शरीर और होमियोपैथी

वो जो कम से कम दवा लिखते हैं वो BEST HOMOEOPATH है । यह एक GOLDEN RULE है । कोई जो कि सपफल होमियोपैथिक चिकित्सक बनना चाहता है, उन्हें अनावश्यक दवाओं को देने से बचना चाहिए । ऐसी जगह पर हमें सोचना चाहिए कि ‘‘कब दवा दें’’ और ‘कब’ ना दें । होमियोपैथी में हजारों किताबें मेटेरिया-मेडिका के रूप में हैं, यहाँ तक कि आर्गेनन और पिफलास्पफी, जो हमें दवा PRESCRIBE करने के लिए ‘‘गाईड’’ करते हैं । यह नहीं बता पाते कि कब ‘‘दवा’’ देनी चाहिए । केश नं0-1 एक रोगी अतिसार से पीड़ित हो मेरे पास आया, और बोला कि डाक्टर साहब, आज तीसरा दिन है मै मतैं इसकों भुगत रहा हूँ । दो दिन से यही हाल है, रोज लगभग 25-30 पखाने हो रहें है , बिल्कुल पानी की तरह एवं कभी हज्के पीले । और कुछ खाँउफ, तब तो जरूर जान पड़ता है अगर थोड़ा देर भी हो जाये तो पखाना मेेरे रोकने से नही रूकने वाला है। जब रोगी से पूछा गया कि-तुम परसो ही क्यों नही आ गये ? तो जवाब मिला कि एक तो ना मुझे कही जाने की शक्ति थी और ना ही पखाना मेरे CONTROL में था कि आपके पास 2 घंटा इंतजार करता । तब आज कैसे आ गये-मेरा अगला प्रश्न था । वह बोला-आज मैने ना कुछ खाया और ना कुछ पीया है, इसीलिए पखाना नही लगा है। दो दिन तक बहुत कमजोरी थी, कल से पखाने की बारम्बारता में कमी भी आई है और आज सुबह से कुछ खाने की ईच्छा भी बनी है एवं आज सिपर्फ 3 ही पखाने हुए है । रात को अच्छी नींद के कारण मुझ में चलने की शक्ति भी आई है, इसी वजह से आज आया हूँ। नया सवाल मैने रोगी से पूछा कि क्या तुम्हे सचमुच भूख लग रही है या जबरदस्ती तुम खुद कुछ खाना चाहते हो । नहीं-नहीं, आज सचमुच में 3 दिन के बाद मैने नास्ता किया है । उपरोक्त केस में, अतिसार निश्चित रूप से कुछ IN FACTION के कारण या TOXIN आ जाने के कारण [खाने के साथ या अन्य तरीके से] । अब हुआ यह कि शरीर ने उसको अपने स्तर निष्क्रिय करना चाहा, मगर वह निष्क्रिय नही हुआ, और शरीर उसको सह भी नही पा रहा है, यह चीज अगर शरीर में रहेगा तो शरीर को नुकसान पहुँचा सकता है, तब शरीर अपनी सुरक्षा के मद्देनजर, उस TOXIN को बाहर फेकना शुरू करता है, जो कि हमारे सामने अतिसार के रूप में आया । सत्य यह है कि अतिसार जो पैदा हुआ वह शरीर की अपनी सुरक्षा के कारण हुआ, तभी जाकर शरीर स्वंय ही CURE हो सका । यह CURE तभी आया जब शरीर से TOXIN बाहर निकल गया और उसकी जगह CURE पहुँच गया अेर तब अपने आप ही रोगी अच्छा लगने लगा, कमजोरी कम हुई, अच्छी नींद आयी, पखाना कम जो गया और उसमें शक्ति का संचार हो गया और उसकी भूख भी वापस हो गयी। सामान्यतः स्वास्थ्य का यही मापदंड है कि काम करने की ईच्छा जगे, काम करने की शक्ति आ जाये खाना खाने की स्वतः ईच्छा हो ना कि जबरदस्ती और इन सभी से ज्यादा महत्वपूर्ण है नींद का आना । अगर यह सभी कुछ हो रहा हो तो अब यह कहने कि जरूरत ही नही कि पखाना रूक जायेगा। नही-नही ‘‘पखाना रूक जाना’’ यहाँ सही शब्द नही हे बल्कि यह कहना ठीक होगा कि अब 24 घंटो के अन्दर पखाना सामान्य हो जायेगा । अब इस रोगी को सिपर्फ PL देकर कहना होगा कि जाओ, तुम्हारा पखाना कल से सामान्य हो जायेगा । आपकी भविष्यवाणी सच हो सकती है, अगर आप PHYSIOLOGY OF MAN को ठीक से समझते है, तो । आपके रोगी के अन्दर भी एक डाॅक्टर है, उसको भी आपको सम्मान देना होगा। अगर वह रोगी को CURE की पथ पर ले जा रहा है, तो किसी को भी हक नही है, उसमें व्यवधन डालने का , चाहे वह होमियोपैथ हो अथवा एलोपैथ । क्योंकि वह जानता है कि शरीर के लिए उत्तम क्या है ? केस न0-2 एक बच्चे को 4 दिन से बुखार था, जिसे मेरे पास ईलाज के लिए लाया गया । बच्चा सुस्त था, रात को बुरी तरह खांसी आती थी, साथ ही थोड़ा-थोड़ा पानी की प्यास । जब इस बच्चे को होमियोपैथी एवं ऐलोपैथी से ईलाज के पहले लाया जाता तो आप कौन सी दवा देते उसे, लेकिन उसेे इसी स्थिति में दवा की जरूरत है? सबसे पहले यह जानना होगा कि बुखार पिछले 3 दिनों में कभी उतरा था या नही ? दुसरी बात का पता लगायेगें कि क्या इसके क्रियाशीलता में कोई कमी आयी है या नही ? तीसरी बात - क्या बच्चा कुछ खाने के लिए माँग कर रहा है या नहीं ? अगर हाँ तो बच्चा निश्चित रूप से CURE की दिशा में अग्रसर हो गया है । अगर बच्चा कल की अपेक्षा आज खेल रहा है और खाने के लिए मांग कर रहा है, तो इसका सापफ मतलब है कि बच्चा अपने-आप स्वस्थ हो रहा है ;अगर अभी बुखार है भी तोद्ध अगर इस स्थिति में ऐलोपैथ को बुलाकर VIRAL INFECTION के लिए कोई दवा दी जा रही है तो यह अपराध् है । इस स्थिति में कोई भी दवा की जायेगी तो बच्चे कोेे बुखार के साथ नई बीमारी शुरू हो जायेगी और RECOVERY दूर चली जायेगी । हमें व्यक्ति के INTERNAL CURATIVE MECHANISM का सम्मान करना चाहिए। SINGLE REMEDY SINGLE DOSE अगर आप चाहते है कि आपकी चिकित्सा से चमत्कार हो, अगर इसे स्वंय अपनी आँखो के सामने देखना चाहते है, अगर आप टायपफाइड बुखार को 24 घंटे में खत्म करना चाहते हैं, अगर निमोनिया को 48-72 घंटो में ठीक करना चाहते हो, [RADIOLOGICALLY], अगर पेशाव के 100-135 पस-सेल्स को 48 घंटो के भीतर गायब देखना चाहते हो, या अगर अपनी चिकित्सा से एलोपैथों को आश्चर्यचकित कर देना चाहते हो, तो इसका सिपर्फ और सिपर्फ एक ही रास्ता है- ‘‘सदृश औषध् िकी एक मात्रा’’ वो चिकित्सक जो बुखार के कई दवाओं के मिश्रण, पेटेन्ट और वायो कम्बीनेशन देते है, या अतिसार के लिए एलो, पोडो, क्रोटोन टिग0 वो होमियोपैथिक सिद्धान्त या सिमिलिया, सीमिलिवस, क्यूरेन्टर के अनुसार चिकित्सा नहीं है अब उन्हे एक सच्चा प्रयास के लिए अग्रसर होना चाहिए और होमियोपैथी के प्रति न्याय करना चाहिए । एक रोगी को 3 बजे सुबह जाड़ा लगकर 4 बजे बुखार हो गया, इसके साथ ही ठंडे पानी की प्यास भी जाड़ा लगने के साथ ही है, पिफर जाड़ा बन्द हो गया, बुखार भी गायब हो गया, परन्तु भयंकर सिरदर्द शुरू हो गया, रोगी सुस्त हो गया, एवं नींद खत्म हो गयी । पंखा चाहता है, परन्तु किसी हड्डी में दर्द नही और ना ही शरीर में कोई शिकायत भी नही करता । अब इस केस को ANALYSIS एवं REPERTORISE करते है ।

1. CHILL AT 3 AM : NIGHT MID NIGHT AFTER 3 HOURS ON WALKING - ONLY FERR.

2. CHILL, NIGHT, MID NIGHTAFTER: ARS,CALAD, HEP, OP, THUJA, COFF, DROS, MAG-S, MANG, MERC, MEZ, PETR, SIL, SUL.

3.CHILL [CHAPTER] - TIME 3 HOURS- ALOE, AM-M, CAUST, CEDRON, CINNI, CINA, EUP PERF, FERR, LYSS, N-MUR, RHUS TOX, SIL, YHIYA

4. SOME RUBRICS - 3AM : ARS [COMPLETE REP.] 3-5 AM - KALI CARB [COMPLETE -REP.]

5. FEVER[CHAPTER]: SUCCESSION OF STAGE CHILL FOLLOWED BY HEAT - 78 DRUGS

अब आप स्वंय देख रहें है, इन रूबरिक देखकर ही मन भ्रमित हो जा रहा है, अब आप अपने रोगी को कौन सी दवा देंगे और क्या ठीक करेंगे? अन्य जो छोटे RUBRICS इसके साथ दिखेंगे वो है, पसीना के साथ वृ(ि, जाड़ा के पहले गर्मी लगना, पसीना के बाद प्यास, वगैरह-वगैरह, ये तो हमें और CONFUSE कर दे रहें है । अलग-अलग रेपर्टरी के अलग VERSIONS में भिन्न-भिन्न दवाएँ नजर आती है । अब बेचारा होमियोपैथ क्या करे? पिफर वो सबको छोड़कर 2, 4 या 6 दवाओं का समिश्रण तैयार करता है । जिन दवाओं में मुख्य रूप से ठण्ड, गर्मी, प्यास होती है इनको 2 - 2घंटे पर देने का आदेश देता है, पिफर ध्ीरे-ध्ीरे रोगो की तकलीपफ 3-4 दिनों में कम जो जाती है और होमियोपैथ खुश हो जाता है कि उसकी दवा ने बुखार ठीक कर दिया और उसने रोगी को ऐलोपैथ के पास जाने से बचा लिया । यह होमियोपैथ जान ही नही पाता है कि मिश्रण ने VIRAL या BACTERIAL INFECTION को अन्दर ही दवा दिया है, जो कि अपने COURSE के अनुसार चल रहा है और कुछ समय बाद वह पिफर वापस आ जायेगा । जब मैने अपनी होमियोपैथिक कैरियर का शुरूआत किया था तो इन सभी का प्रयोग किया था, अपने आत्म विश्वास को वापस पाने के लिए सभी को आजमाया था, कई दवाएँ व कई-कई बार रिपीटिशन करता था जिसका परिणाम यह होता था कि केस ऐलोपैथों के पास चला जाता था, जो कि यह कहते हुए जाते थे कि सीरियस बीमारियों का ईलाज होमियोपैथी में है ही नहीं । हममें से सभी के साथ ऐसा ही हुआ है, लेकिन एक बात हम सभी मानते एवं जानते है कि किसी भी स्थिति होे और कैसी भी परिस्थिति हो, अगरRIGHT SIMILIMUM दवा मिल जाती तो एक केस भी हमारे पास से कहीं भी नही जाने वाला था। अगर हमें रोगग्रस्त रोगी का ईलाज करते, ना कि रोगी में ग्रसित बीमारी का । सही मानिए, अगर इस एक लाईन को सही तरह ‘‘इसके भाव के साथ’’ समझ गयें, तो पिफर कोई रोग हमसे बच नही सकता और ना हमें डरा सकता है, क्योकि अब हमें रोग नही रोगी दिखाई देने लगेगा । तब ही हम अपनी चिकित्सा में रोगी के साथ, होमियोपैथी के साथ और साथ ही अपने साथ भी न्याय कर सकेंगे । ये चीजें हमारी उत्साह और साहस बढ़ाने वाली है, आइये, हम बीमारी से लगें । हमें ध्यान रखना होगा, आज की नई MODERN MEDICINE को देखिये, जिसमें ‘‘टीकाकरण’’ भी है, यह होमियोपैथिक सि(ान्त की देनें है, इसमें जरा भी संदेह नही होना चाहिए। अब करोड़ रूपये का सवाल यह है कि अगर ऐलोपैथ, होमियोपैथिक सि(ान्त को अपना सकते है जैसे कि TUBERCULOSIS से रक्षा के लिए TUBERCULAR BACILLI को रोगी को देते है और TETANOUS TOXID को TETANOUS ठीक करने में उपयोग कर है, और वो भी बार-बार नही बल्कि 3-3 महीनों पर एक खुराक का डोज देते है और जिससे इन्सान स्वस्थ रहता है, तो क्यों नही हम होमियोपैथ अपने ‘‘सि(ान्तों’’ पर भरोसा करते है? जब एक ऐलोपैथ एकल औषध्ी सि(ान्त एवं एक डोज पर विश्वास करने लगे है पिफर हम इन सबके बाद, किसी रोगी की रक्षा करने के लिए 1 या 2 दवाओं की एक साथ क्यों जरूरत पड़ती है? जिनका की सि(ान्त ही है, एक दवा और एक खुराक । आईये, वापस अपने केस पर चलते है, यहाँ इस केस में ठण्ड, ठण्ड का समय या ठण्ड का प्रकार, सिरदर्द पसीना का समय ये महत्वपूर्ण तो है पर ज्यादा नही । यह जाड़ा और कपकपी सिपर्फ बीमारी का एक लक्षण है और एक साधरण प्रक्रिया है, गर्मी उत्पन्न होने के एहसास का । यह अपने आप ही पैदा होता है, जब कोई व्यक्ति रोग के गिरपफत में होता है । CHILL औरSHIVERING का उत्पन्न होना को मान लें शरीर की एक ऐसी प्रक्रिया जिसके कारण गर्मी उत्पन्न होने की व्यवस्था शुरू हो रही है । ऐसा इसलिए होता है कि शरीर जड़त्व पैदा कर, गर्मी उत्पन्न करता है क्योंकि शरीर उस गर्मी से BACTERIA या VIRUS या PARACITE को खत्म करना चाहता है । यह शरीर की अपनी व्यवस्था है, अपने आप को बचाने के लिए। इसमें कोई संदेह नही है कि अलग-अलग व्यक्ति में अलग तरह की सुरक्षा की व्यवस्था होती है, पर इस रोगी की रेपर्टरी से दवा SELECT करना सही नही हो सकता हे बल्कि CONFUSION बढ़ा रहा है । अगर इन सबको ध्यान में नही रखेंगे तो क्या दवा PRESCRIBE करेंगेे । हम लोग रोगी व्यक्ति के ईलाज में ध्यान दें व्यक्ति या उसके व्यक्तित्व में जो परिवत्र्तन आया है, उसे समझे तभी SIMILIMUM दें सकेंगे । NO DOUBT , प्रत्येक लक्षण, चाहे वो दर्द हो या जाड़ा या किसी तरह का बुखार, यह रोगी व्यक्ति का प्रतिनिध्त्वि करते है, लेकिन इसके कुछ और भी प्रतिनिध् िजो इसका प्रतिनिध्त्वि करते हैं और ये होते हैं, मुख्य प्रतिनिध् िजो VITAL FORCE के है । पर नयी बीमारी में जिसको की अन्य मुख्य लक्षणों के साथ जोड़कर SIMILIMUM तक पहुँचाते है ।

डा० अशोक गुप्ता

होमियोपैथिक माईन्ड july-sept 200

Sunday, September 27, 2009

WHY MIASMATIC THEORY

WHY MIASMATIC THEORY

THERE CANNOT BE A RIGHT SIMILIMUM WITHOUT CONSIDERATION OF MIASM.

In Hahnemann's words,” the true natural chronic diseases are those that arise from a chronic miasm, when left to themselves, improper treatment, go on to increase, growing worse and torment the patient to the end of his life." - $ 78 Organon

Hahnemann spent 12 years of his life investigating miasms, collecting proof these findings going unnoticed by others in the medical professions, "The Chronic diseases" was written. He describes how using antipsoric medicines used on the psora miasm would enable a practitioner to cure effectively.

senses and pains of thousands of kinds. Psora has passed on through hundreds of generations of people and has produced an innumerable variety of defects, injuries, derangements, and sufferings

Type of disease and symptoms of disease help us to assess the MIASM.

The mind and body work together as a unit and the disturbances are expressed in both spheres.

Psoric Miasm: reaction of body on exposure to environmental stimuli to ones surroundings like noise, light, and odors, producing functional disturbances like headache, nausea, and discomfort. The disease type whether inflammatory or only physiologic dysfunction or sensitivity which is due to deficiency is PSORIC disease. Rhinitis, Bronchitis, Gastro-enteritis, Urinary tract infections (Non-gonorrhoeal) are indicative of a persin in psoric phase.

Sycotic Miasm: hypersensitive response to something specific arising from a deficiency of the normal response like tumors, allergies, keloids. Deficient feeling gives rise to an increased attempt to repair the fault. The disease type where there is accumulation, thickening, growth, tumors are due to SYCOSIS. People having warts, callosities, corns and other excrescences are pointing towards SYCOTIC remedy as a similimum.


Syphlitic Miasm: Not manageable, finding destruction like gangrene, ulceration. Body and mind destroy itself, give-up. The disease where there is distortion, perversion, and destruction is generally SYPHILITIC disease.

Personality types
Psoric Miasm: highs and lows, struggling with outside world, becomes apparent at times of stress, lack of confidence, constant anxiety feelings, fear, like he can't do it, insecurity, anxiety about the future but always having hope, mentally alert.
Sycotic Miasms: secretiveness, hide his weakness, tense, constantly covering up situations, fixed habits, suspicious, jealous, forgetful.
Syphlitic Miasm: strong pessimistic view on life, cannot modify what is wrong, give-up, destroy, no point in trying to adjust, sudden impulsive violence directed at him or others, dictatorial rigid ideas. Mental paralysis, mentally dull, suicidal, stupid, stubborn, and homicidal.


Miasmatic Clinicals
Psoric Miasm: Acidity, burning, cancer, sarcomas, constipation, epilepsy, flatulence, hoarseness, itching of skin, leprosy, burning of spinal cord, watery discharge from nose and eyes with burning.
Sycotic Miasm: Abortion, acne without pus, angina pectoris, anemia, appendicitis, cough (whooping), colic, pelvic disease + sexual organs, piles, prostitis, nephritis (kidney), gout, arthritis, dry asthma, dysmenorrheal, herpes, rheumatism, warts, urinary ailments.
Syphlitic Miasm: discharges putrefaction, blindness, boil in veins and bones, carcinomas, fistula, fungal infection of extremities, gangrene, hyperextension, bone marrow inflammation, insanity due to depression, leucorrhoea, rheumatism of long bones, skin disease with ooze + pus, sore throat, history of abortions, sterility, immature death, cardiac attacks, suicidal deaths, insanity, cancer, tuberculosis, ulcers of ear, nose, urinary organs, mouth, etc.

The above help us to know which group of remedies may be indicated. It also helps us to decide on potency and repetition.

The above is only a very brief account of the miasms, otherwise it is a very vast subject.

Every homeopath should read each remedy separating its symptom miasm-wise. Following is an example of LYCOPODIUM CLAVATUM:

LYCOPODIUM CLAVATUM

Lycopodim is a very deep acting and long acting TRIMIASMATIC homoeopathic remedy. In this small paper, I intend to highlight its trimasmatic features separately miasmwise on the lines of Proceso S. Ortega and the most important and diligent homoeopath PRAFULL VIJAYAKAR who has developed and scientifically and practically explained all the aspects of homoeopathy, e.g., Organon; Miasms; Materia Medica; Parameters of Cure; Hering’s Law; and Method of Selection of Similimum, applying the law of genetics and coined it as ‘ Genetic Constitutional Similimum’. He, from time to time, practically shows the grave cases both acute and chronic, in seminars, cured with single doses and without indiscriminate repetition of medicine even in acute cases and more so in chronic cases.

I am a student of homoeopathy since 1960. In 2003, I changed to this method of selecting the similimum. It is comparatively easy and accurate. Prafull Vijayakar is right to suggest the need of rewriting the Homoeopathic Materia Medica depicting each remedy miasmwise. Another very beautiful feature of his homoeopathic personality is that he has highlighted the subtleties of each remedy’s mental symptom, which were not mentioned in the smaller materia medicas. He studies a remedy’s mental effects very deeply and apply them on the final selection of the similimum from among the last few remedies after repertorisation. Philip M Bailey the homoeopathic psychiatrist stresses the need of accurate and realistic description of the constitutional remedies. The old materia medicas that we rely heavily upon deals only with the most important elements of each remedy missing the subtleties that we actually find in the minds of the people. He, further, delineates and enlarges the thermal list of remedies given by Douglas M. Gibson and V. Ghegas and stresses the need of importance of thermal aspects of a remedy in the selection of similimum.

Menal Symptoms of Lycopodium, thus, extracted from Synthesis 9.2.1. are mentioned below. The symptoms which are mentioned in italics denote grade 2 and the capital ones denote 3. Grade one symptoms have not been taken. Profession may consult the repertory.

P S O R A (LYCOPODIUM).

ANXIETY. Cheerfulness. Carried desire to be. Complaining. Confusion. Excitement. Industrious. IRRITABLE. Intelligent. Mild. Religious affections. TO

OCCUPIED WITH RELIGION. SADNESS. SYMPATHETIC. TIMIDITY. Yielding.

S Y C O S I S (LYCOPODIUM)

ABUSIVE. Affectation, children. AMATIVENESS. AMATIVENESS, WANT OF IN MEN. Amorous. ANGER. Absent-minded. Avarice. Boaster. COWARDICE. Discontented DULLNESS. Egotism. FEAR. FLATTERING. Hatred, children. HAUGHTY. HYPOCRISY. Imitation. Industrious. PARSIMONY. Mirth. Muttering. Secretive. Selfishness. SUSPICIOUS. SADNESS. TIMIDITY.

S Y P H I L I S (LYCOPODIUM)

ANGUISH. Cursing. DESPAIR. ENNUI, TEDIUM. Fancies, exaltation Godless. Hysteria. IMBECILITY Indifference INSANITY Kill, desire to. LAMENTING Malicious. MANIA Misanthropy. Nymphomania. Want of Sensitivity.

PRAFULL VIJAYAKAR says that in Psora, Lycopodium has Anxiety from anticipation. And in Sycosis, Lycopodium is Dictatorial, timid and constipated.

SAMUEL HAHNEMANN says that Lycopodium is PUSSILLANIMOUS and PARSIMONIOUS.

Proceso Ortega says that principal attitudes of the soul, or primordial psychic functions, are present in LYCOPODIUM in the gradation corresponding to the miasmatic modulations or to the compensating symptom of the miasm.

To know the mental subtleties further, I suggest the profession to study the works of great homoeopaths, e.g., George Vithoulkas (esp. Materia Medica Viva and Essence of M.M.),

Philip M Bailey, Edward C. Whitmont, Paul Herscu and Cornelia Richardson-Boedleer. The last four authors are homoeopathic psychiatrists.

The thermal aspects of LYCOPODIUM.

In My Repertory, additions Lycopodium is not shown in Chilly remedies and shown in grade two in Hot remedies.

Douglas M Gibson and V. Ghegas have not mentioned Lycopodium in Cold and Hot remedies list but mentioned it as ambithermal remedy.

All repertories mention Lycopodium in grade 2 in ‘ Vital Lack of Heat’.

Paul Herscu mentions it as chilly remedy.

Frans Vermeulen says that it is a chilly medicine with craving for open air.

Douglas M. Gibson says that it is a definitely chilly individual hates the cold and feels paralyzed thereby in both body and mind, but also tends to flag in great heat, which embarrasses the not too active circulation while liking to be comfortably warm, is oppressed by the much clothing or a hot stuffy room.

Physical appearance and confirmatory symptoms of Lycopodium:

Lean but intellectually keen; weak muscular power; upper part wasted but lower one semi-dropsical. Predisposition to lung and hepatic diseases. Red sand in urine.

Complexion dirty, unhealthy; fan like motion of alae nasi

Some mental subtleties of Lycopodium: (PSYCHOSOMATIC STUDY):

Edward C. Whitmont, a homoeopathic psychiatrist, writes that for more than a hundred years of Homoeopathy anticipated and applied holistic medicine by prescribing for the totality of mental as well as physical symptoms. Moreover, Homoeopathy could make most fundamental contributions to genuine psychosomatics, since allopathic medicine lacks the possibility of true clinical experiment in the field. For the purpose of scientific deduction it is necessary to show that whenever in a heretofore normally functioning organism certain mental changes are induced, they are invariably followed by certain physical changes, and vice versa. Obviously, experiments with animals are not suited for this. Therefore, allopathy has no reliable material on psychosomatic therapeutics. Their therapeutics is based on mere speculation.

Cornelia Richardson-Boedler (Homoeopathic Psychiatrist): writes that it is essentially a psychosomatic remedy empowered to cure a large number of grave diseases in man that the flesh is heir to if prescribed giving due importance to the finest features of mental symptoms along with the physical characteristics of the remedy.

Lycopodium patient is essentially a coward having deep sense of insecurity. Therefore, he seeks importance and political power. To hide his feeling of inferiority he is harsh on men without authority and is polite to powerful people. He is a flatterer. He is harsh to his family members. He is domineering and intolerant to contradiction, but avoids confrontation. He is servile, obsequious and yielding. He lacks self-confidence and suffers from stage fright, undertaking new enterprise, has anticipatory anxiety. He is secretive and PARSIMONIOUS.

CONTRAINDICATIONS (LYCOPODIUM): It is not well indicated in fearless and courageous individuals. It is contraindicated in extravagant, squanderer of money, communicative, talkative, benevolent and extroverts. It is intelligent but non-diligent.

NOTE: Paul Herscu says that old materia medicas often advise against beginning of treatment with Lycopodium and advise to use some other remedy before it. This is not borne in clinical experience and should be disregarded. Begin the case with SIMILIMUM always. PRAFULL VIJAYAKAR also does not indicate any such warning in his writings.

The above description of Lycopodim is far from being complete. It is my humble effort to present some of its subtleties to the profession with the request to edit it and correct it if so required. Any superfluous material may be subtracted or any useful material may be added. I may be questioned if there is any doubt.

Long lives Homoeopathy.

Dr. Ashok Gupta

लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती.

नन्हीं चींटी जब दाना लेकर चलती है,
चढ़ती दीवारों पर, सौ बार फिसलती है.
मन का विश्वास रगों में साहस भरता है,
चढ़कर गिरना, गिरकर चढ़ना अखरता है.
आख़िर उसकी मेहनत बेकार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती.

डुबकियां सिंधु में गोताखोर लगाता है,
जा जा कर खाली हाथ लौटकर आता है.
मिलते नहीं सहज ही मोती गहरे पानी में,
बढ़ता दुगना उत्साह इसी हैरानी में.
मुट्ठी उसकी खाली हर बार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती.

असफलता एक चुनौती है, इसे स्वीकार करो,
क्या कमी रह गई, देखो और सुधार करो.
जब तक सफल हो, नींद चैन को त्यागो तुम,
संघर्श का मैदान छोड़ कर मत भागो तुम.
कुछ किये बिना ही जय जय कार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती

· To remove mis-conceptions of homoeopathy.

· To provide maximum knowledge of homoeopathy & homoeopathic medicines to all .

· To provide a platform for discussion on homoeopathy.

· Invitation of feedbacks on my homoeopathic articles .

· Invite other homoeopathic doctors to give their suggestions .

· Provide homoeopathic knowledge to homoeopathic students .

· To invite students for their quaries, discussions & other homoeopathic related doubts.

· If somebody wants to know about homoeopathic treatment,they are most welcome.

· Patients who are suffered from different simple to chronic diseases & interested in homoeopathic treatment, are most welcome .

· To introduce about different homoeopathic activities.