Monday, April 6, 2015

for Health

स्वस्थ रहने के लिए अधिकतर लोग भोजन में सलाद भी शामिल
करते हैं क्योंकि माना जाता है कि खीरा, ककड़ी, टमाटर,
मूली, चुकन्दर, गोभी आदि खाना स्वास्थ्य के लिए बहुत
अच्छा है। लेकिन अगर पत्तेदार सब्जी व सलाद के साथ
ही भोजन में अंकुरित अनाज को शामिल किया जाए तो यह
बहुत फायदेमंद होता है, क्योंकि बीजों के अंकुरित होने के
बाद इनमें पाया जाने वाला स्टार्च- ग्लूकोज, फ्रक्टोज एवं
माल्टोज में बदल जाता है जिससे न सिर्फ इनके स्वाद में
वृद्धि होती है बल्कि इनके पाचक एवं पोषक गुणों में
भी वृद्धि हो जाती है। वैसे तो अंकुरित दाल व अनाज
खाना लाभदायक होता है ये तो सभी जानते हैं लेकिन आज हम
बताते हैं इन्हें खाने के कुछ खास फायदे जिन्हें आप शायद
ही जानते होंगे....
- अंकुर उगे हुए गेहूं में विटामिन-ई भरपूर मात्रा में होता है। शरीर
की उर्वरक क्षमता बढ़ाने के लिए विटामिन-ई एक आवश्यक
पोषक तत्व है। यही नहीं, इस तरह के गेहूं के सेवन से त्वचा और बाल
भी चमकदार बने रहते हैं। किडनी, ग्रंथियों, तंत्रिका तंत्र
की मजबूत तथा नई रक्त कोशिकाओं के निर्माण में भी इससे
मदद मिलती है। अंकुरित गेहूं में मौजूद तत्व शरीर से अतिरिक्त
वसा का भी शोषण कर लेते हैं।
- अंकुरित गेहूं में उपस्थित फाइबर के कारण इसके नियमित सेवन से
पाचन क्रिया भी सुचारु रहती है। अत: जिन लोगों को पाचन
संबंधी समस्याएं हो उनके लिए भी अंकुरित गेहूं का सेवन
फायदेमंद है। अंकुरित खाने में एंटीआक्सीडेंट, विटामिन ए, बी,
सी, ई पाया जाता है। इससे कैल्शियम, फॉस्फोरस,
मैग्नीशियम, आयरन और जिंक मिलता है। रेशे से भरपूर अंकुरित
अनाज पाचन तंत्र को सुदृढ बनाते हैं।
- अंकुरित भोजन शरीर का मेटाबॉलिज्म रेट बढ़ता है। यह
शरीर में बनने वाले विषैले तत्वों को बेअसर कर, रक्त को शुध्द
करता है। अंकुरित गेहूं के दानों को चबाकर खाने से शरीर
की कोशिकाएं शुध्द होती हैं और इससे नई कोशिकाओं के
निर्माण में भी मदद मिलती है।
- अंकुरित भोज्य पदार्थ में मौजूद विटामिन और प्रोटीन
होते हैं तो शरीर को फिट रखते हैं और कैल्शियम
हड्डियों को मजबूत बनाता है।
- अंकुरित मूंग, चना, मसूर, मूंगफली के दानें आदि शरीर
की शक्ति बढ़ाते हैं।अंकुरित दालें थकान, प्रदूषण व बाहर के
खाने से उत्पन्न होने वाले ऐसिड्स को बेअसर कर देतीं हैं और साथ
ही ये ऊर्जा के स्तर को भी बढ़ा देती हैं।]

थायराइड

थायराइड मानव शरीर मे पाए जाने वाले एंडोक्राइन ग्लैंड में से
एक है। थायरायड ग्रंथि गर्दन में श्वास नली के ऊपर एवं स्वर यन्त्र
के दोनों ओर दो भागों में बनी होती है। इसका आकार
तितली जैसा होता है। यह थाइराक्सिन नामक हार्मोन
बनाती है जिससे शरीर के ऊर्जा क्षय, प्रोटीन उत्पादन एवं अन्य
हार्मोन के प्रति होने वाली संवेदनशीलता नियंत्रित होती है।
यह ग्रंथि शरीर के मेटाबॉल्जिम को नियंत्रण करती है
यानि जो भोजन हम खाते हैं यह उसे उर्जा में बदलने का काम
करती है।
* इसके अलावा यह हृदय, मांसपेशियों, हड्डियों व कोलेस्ट्रोल
को भी प्रभावित करती है।
*आमतौर पर शुरुआती दौर में थायराइड के किसी भी लक्षण
का पता आसानी से नहीं चल पाता, क्योंकि गर्दन में
छोटी सी गांठ सामान्य ही मान ली जाती है। और जब तक इसे
गंभीरता से लिया जाता है, तब तक यह भयानक रूप ले लेता है।
*आखिर क्या कारण हो सकते है जिनसे थायराइड होता है।
* थायरायडिस- यह सिर्फ एक बढ़ा हुआ थायराइड ग्रंथि (घेंघा)
है, जिसमें थायराइड हार्मोन बनाने की क्षमता कम हो जाती है।
* इसोफ्लावोन गहन सोया प्रोटीन, कैप्सूल, और पाउडर के रूप में
सोया उत्पादों का जरूरत से ज्यादा प्रयोग भी थायराइड होने
के कारण हो सकते है।
* कई बार कुछ दवाओं के प्रतिकूल प्रभाव भी थायराइड की वजह
होते हैं।
* थायराइट की समस्या पिट्यूटरी ग्रंथि के कारण भी होती है
क्यों कि यह थायरायड ग्रंथि हार्मोन को उत्पादन करने के संकेत
नहीं दे पाती।
* भोजन में आयोडीन की कमी या ज्यादा इस्तेमाल
भी थायराइड की समस्या पैदा करता है।
* सिर, गर्दन और चेस्ट की विकिरण थैरेपी के कारण या टोंसिल्स,
लिम्फ नोड्स, थाइमस ग्रंथि की समस्या या मुंहासे के लिए
विकिरण उपचार के कारण।
* जब तनाव का स्तर बढ़ता है तो इसका सबसे ज्यादा असर
हमारी थायरायड ग्रंथि पर पड़ता है। यह ग्रंथि हार्मोन के स्राव
को बढ़ा देती है।
* यदि आप के परिवार में किसी को थायराइड की समस्या है
तो आपको थायराइड होने की संभावना ज्यादा रहती है। यह
थायराइड का सबसे अहम कारण है।
* ग्रेव्स रोग थायराइड का सबसे बड़ा कारण है। इसमें थायरायड
ग्रंथि से थायरायड हार्मोन का स्राव बहुत अधिक बढ़ जाता है।
ग्रेव्स रोग ज्यादातर 20और 40 की उम्र के बीच की महिलाओं
को प्रभावित करता है, क्योंकि ग्रेव्स रोग आनुवंशिक कारकों से
संबंधित वंशानुगत विकार है, इसलिए थाइराइड रोग एक
ही परिवार में कई लोगों को प्रभावित कर सकता है।
* थायराइड का अगला कारण है गर्भावस्था, जिसमें प्रसवोत्तर
अवधि भी शामिल है। गर्भावस्था एक स्त्री के जीवन में
ऐसा समय होता है जब उसके पूरे शरीर में बड़े पैमाने पर परिवर्तन
होता है, और वह तनाव ग्रस्त रहती है।
* रजोनिवृत्ति भी थायराइड का कारण है
क्योंकि रजोनिवृत्ति के समय एक महिला में कई प्रकार के
हार्मोनल परिवर्तन होते है। जो कई बार थायराइड की वजह
बनती है।
*थायराइड के लक्षण:--
कब्ज- थाइराइड होने पर कब्ज की समस्या शुरू हो जाती है।
खाना पचाने में दिक्कत होती है। साथ ही खाना आसानी से गले
से नीचे नहीं उतरता। शरीर के वजन पर भी असर पड़ता है।
हाथ-पैर ठंडे रहना- थाइराइड होने पर आदमी के हाथ पैर हमेशा ठंडे
रहते है। मानव शरीर का तापमान सामान्य यानी 98.4
डिग्री फॉरनहाइट (37 डिग्री सेल्सियस) होता है, लेकिन फिर
भी उसका शरीर और हाथ-पैर ठंडे रहते हैं।
प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होना- थाइराइड होने पर शरीर
की रोग-प्रतिरोधक क्षमता कम़जोर हो जाती है। इम्यून सिस्टम
कमजोर होने के चलते उसे कई बीमारियां लगी रहती हैं।
थकान– थाइराइड की समस्या से ग्रस्त आदमी को जल्द थकान
होने लगती है। उसका शरीर सुस्त रहता है। वह आलसी हो जाता है
और शरीर की ऊर्जा समाप्त होने लगती है।
त्वचा का सूखना या ड्राई होना– थाइराइड से ग्रस्त
व्यक्ति की त्वचा सूखने लगती है। त्वचा में रूखापन आ जाता है।
त्वचा के ऊपरी हिस्से के सेल्स की क्षति होने लगती है
जिसकी वजह से त्वचा रूखी-रूखी हो जाती है।
जुकाम होना– थाइराइड होने पर आदमी को जुकाम होने
लगता है। यह नार्मल जुकाम से अलग होता है और ठीक
नहीं होता है।
डिप्रेशन- थाइराइड की समस्या होने पर आदमी हमेशा डिप्रेशन
में रहने लगता है। उसका किसी भी काम में मन नहीं लगता है,
दिमाग की सोचने और समझने की शक्ति कमजोर हो जाती है।
याद्दाश्त भी कमजोर हो जाती है।
बाल झड़ना- थाइराइड होने पर आदमी के बाल झड़ने लगते हैं
तथा गंजापन होने लगता है। साथ ही साथ उसके भौहों के बाल
भी झड़ने लगते है।
मांसपेशियों और जोड़ों में दर्द- मांसपेशियों और जोड़ों में दर्द
और साथ ही साथ कमजोरी का होना भी थायराइड
की समस्या के लक्षण हो सकते है।
शारीरिक व मानसिक विकास- थाइराइड की समस्या होने पर
शारीरिक व मानसिक विकास धीमा हो जाता है।

दांतों की करे बेहतर देखभाल करे ......!

* दांतों की करे बेहतर देखभाल करे ......!

* अगर आप अपने दाँतो की अच्छे से देखभाल नहीं करते
तो दाँतो एवं मसूडों में होने वाली बीमारियाँ आपके
दाँतो को समय से पहले खत्म कर सकते हैं | कुछ बहुत ही साधारण से
तरीकों से आपके दाँत आपके साथ बहुत लंबे समय तक रह सकते हैं |
* हम सबके मुंह में हमेशा लाखों बैक्टीरिया रहते हैं जिनका कि एक
ही लक्ष्य होता है कि किसी तरह से कोई कड़ी सतह मिल जाए
तो उस पर जाकर चिपक जाएँ और फिर एक बड़ा समूह बना लें| यह
प्रक्रिया साल के ३६५ दिन, और चौबीसों घंटे हमारे मुंह में
होती रहती है | इस
प्रक्रिया को रोका नहीं जा सकता क्योंकि ये
बैक्टीरिया हमारे शरीर का एक हिस्सा हैं | जब ये
बेक्टीरिया कड़ी सतह यानी हमारे दाँतो पर चिपकते हैं तो एक
अदृश्य सतह, जिसको कि प्लेक कहते हैं, हमारे दांतों के चारों ओर
बना देते हैं | आपने शायद सुबह को उठकर अपने दाँतो पर जीभ
फिराते हुए कभी उस प्लेक को महसूस भी किया हो |
दाँतो की देखभाल करने का मुख्य उद्देश्य ब्रश या फ्लोस
की सहायता से इसी प्लेक को साफ़ करना होता है |
* अपने दाँतो को दिन में कम से कम दो बार लगभग दो मिनट
या इससे ज्यादा ब्रश करना चाहिए | ब्रश सभी दांतों के आगे
पीछे सभी जगह करना चाहिए और जीभ को भी साफ़
रखना चाहिए | सोने से पहले ब्रश करना सबसे ज्यादा फायदेमंद
रहता है | दिन में मुँह में रहने वाली राल भी हमारे
दांतों को बचाती है जबकि रात में हमारा मुह सूखा रहता है और
फंसा हुआ खाना उनको नुक्सान पहुंचाता है | अगर किसी कारण
कभी आप रात में ब्रश न कर पाए तो आपको पानी से जोरदार
कुल्ला जरूर करना चाहिए |
* हमारे दाँतो की सभी सतहो तक ब्रश नहीं पहुँच पाता |
दो दांतों के बाच की जगह में फंसा खाना दांतों को बहुत
ही नुक्सान पहुंचाता है इसको निकालने के लिए बहुत ही पतले
धागे का इस्तेमाल किया जाता है जिसको फ्लोस करना कहते हैं
| पुराने ज़माने में लोग खाना खाने के बाद दांत
को कुरेदना अच्छा मानते थे | ऐसा करना दांतों के साथ
मसूडो को भी बहुत फायदा पहुंचाता है |
* मुँह को स्वस्थ रखने के लिए जीभ को साफ़ करना भी उसी तरह
जरूरी है जैसे दाँतो को साफ़ करना जबकि हम अक्सर जीभ
की तरफ ध्यान नहीं देते | मुँह में बदबू, मसूडों या जीभ पर जमी मैल के
कारण ही होती है | आपकी साफ़ जीभ आपके दाँतो और
मसूडो को तो स्वस्थ रखती ही है साथ ही साथ ये आपकी साँस
को भी ताजगी प्रदान करती है |
* स्नैकस खाने से जितना बच सकें बचना चाहिए क्यूंकि स्नैक्स में
प्रयुक्त मसाले बहुत जल्दी ही दांतों में प्लेक को बनने में मदद करते हैं
जिससे जल्दी ही दाँतो में कैविटी हो जाती है |
चॉकलेट खाने से बचना चाहिए | चीज़ और दूध स्वस्थ दांतों के
लिए अच्छे होते हैं | मीठा कम खाना चाहिए |
हरी सब्जियाँ खानी चाहियें | सोडा या जूस के स्थान पर
पानी पीना चाहिए क्योंकि फलों के जूस में भी एसिड्स और
शुगर होते हैं जोकि दांतों को नुक्सान पहुंचाते हैं |
* करीब 90 फीसदी लोगों को दांतों से जुड़ी कोईन कोई
बीमारी या परेशानी होती है , लेकिन ज्यादातरलोग बहुत
ज्यादा दिक्कत होने पर ही डेंटिस्ट के पास जाना पसंद करते हैं।
इससे कई बार छोटी बीमारी सीरियस बनजाती है। अगर सही ढंग
से साफ - सफाई के अलावा हर 6 महीने में रेग्युलर चेकअप कराते रहें
तो दांतों कीज्यादातर बीमारियों को काफी हद तक सीरियस
बनने रोका जा सकता है।
* दांतों में ठंडा - गरम लगना , कीड़ा लगना ( कैविटी ) ,
पायरिया ( मसूड़ों से खून आना ) , मुंह से बदबू आना और
दांतों का बदरंग होना जैसी बीमारियां सबसे कॉमन हैं।
* ठंडा - गरम लगना
वजह :- दांत के टूटने , नींद में किटकिटाने , घिसने के बाद ,
मसूड़ों की जड़ें दिखने और दांतों में कीड़ा लगने पर ठंडा - गरम लगने
लगता है। कई बार बेहद दबाव के साथ ब्रश करने से भी दांत घिस
जाते हैं और दांत संवेदनशील बन जाते हैं।
बचाव :- ज्यादा दबाव से ब्रश न करें और दांत पीसने से बचें।
इलाज :- इलाज वजह के मुताबिक होता है। फिर भी आमतौर पर
डॉक्टर इसके लिए मेडिकेटेड टूथपेस्ट की सलाह देते हैं , जैसे
कि सेंसोडाइन , थर्मोसील रैपिड एक्शन , सेंसोफॉर्म , कोलगेटिव
सेंसटिव आदि। बिना डॉक्टर की सलाह लिए भी इन्हें इस्तेमाल
कर सकते हैं। लेकिन दो - तीन महीने के बाद भी समस्या बनी रहे
तो डॉक्टर को दिखाएं।
* दांत में कीड़ा लगना :-
वजह : -दांत में सूराख होने की वजह होती है , मुंह में
बननेवाला एसिड। हमारे मुंह में आम तौर पर बैक्टीरिया रहते हैं। जब
हम खाना खाते हैं तो खाने के बाद अगर हम कुल्ला या ब्रश न करें
तो खाने के कुछ कण मुंह में रह जाते हैं। ऐसी सूरत में खाना खा चुकने
के 20 मिनटों के अंदर ही बैक्टीरिया खाने के कणों खासकर
मीठी या स्टार्च वाली चीजों को एसिड में बदल देते हैं।
बैक्टीरिया वाला यह एसिड और मुंह की लार मिलकर एक
चिपचिपा पदार्थ ( प्लाक ) बनाते हैं। यह कुछ दांतों पर चिपक
जाता है। अगर काफी दिनों तक उन दांतों की ढंग से सफाई न
हो तो यह प्लाक सख्त होकर टारटर बन जाता है और दांतों व
मसूड़ों को खराब करने लगता है। प्लाक का बैक्टीरिया जब
दांतों में सूराख ( कैविटी ) कर देता है तो इसे
ही कीड़ा लगना ( कैरीज ) कहते हैं।
बचाव :- कीड़ा लगने से बचने का सबसे सही तरीका है कि रात
को ब्रश करके सोएं। मीठी और स्टार्च आदि की चीजें कम खाएं
और बार - बार न खाएं। मीठी चीजें खाने के बाद कुल्ला करें
या ब्रश करें। दांतों की अच्छी तरह सफाई करें।
कैसे पहचानें :- अगर दांतों पर काले - भूरे धब्बे नजर आने लगें ,
खाना किसी दांत में फंसने लगे और ठंडा - गरम लगने लगे
तो कैविटी हो सकती है। इस हालत में तुरंत डॉक्टर के पास जाएं।
शुरुआत में ही ध्यान देने पर कैविटी बढ़ने से रुक जाती है।
* तुरंत राहत के लिए :- अगर दांत में दर्द
हो रहा हो तो पैरासिटामोल , एस्प्रिन , इबो - प्रोफिन
आदि ले सकते हैं। दवा न होने पर लौंग दाढ़ पर दबा सकते हैं या लौंग
का तेल भी लगा सकते हैं। यह मसूड़ों के दर्द से राहत दिलाता है।
इसके बाद डॉक्टर के पास जाकर फिलिंग कराएं।
फिलिंग क्यों जरूरी :-
फिलिंग न कराएं तो दांत में ठंडा - गरम और खट्टा -
मीठा लगता रहेगा। फिर दांत में दर्द होने लगता है और पस बन
जाती है। आगे जाकर रूट कनाल ट्रीटमंट की नौबत आ जाती है।
यानी जितनी जल्दी फिलिंग कराएं , उतना अच्छा है।
फिलिंग कौन - कौन सी
टेंपरेरी फिलिंग :- यह उस वक्त करते हैं , जब दांत में
काफी गहरी कैविटी हो। बाद में दर्द या सेंसटिविटी नहीं होने
पर परमानेंट फिलिंग कर देते हैं। अगर दिक्कत होती है तो रूट कनाल
या फिर दांत निकाला जाता है।
सिल्वर फिलिंग :- इसे एमैल्गम भी कहते हैं। इसमें सिल्वर , टिन ,
कॉपर को मरकरी के साथ मिलाकर मिक्सचर तैयार
किया जाता है।
तरीका :- सबसे पहले कीड़े की सफाई और कैविटी कटिंग
की जाती है। इसके बाद जिंक फॉस्फेट सीमेंट की लेयर लगाई
जाती है ताकि फिलिंग में इस्तेमाल होनेवाली मरकरी जड़ तक
पहुंचकर नुकसान न पहुंचाए। इसके बाद एमैल्गम भरा जाता है।
फिलिंग कराने के एक घंटे बाद तक कुछ न खाएं। बाद में फिलिंग
वाली दाढ़ के दूसरी तरफ से खा सकते हैं। 24 घंटे बाद फिलिंग वाले
दांत से खा सकते हैं।
फायदे :- यह दूसरी फिलिंग्स से सस्ती और ज्यादा मजबूत
होती है।
नुकसान :- यह ग्रे / ब्लैक होती है। देखने में खराब लगती है। इसे
मरकरी से मिक्स किया जाता है। नॉर्वे और स्वीडन में इस अमैलगम
पर बैन है। साथ ही , लीकेज होने के खतरे के अलावा कई बार इसमें
जंग भी लग जाती है।
कंपोजिट फिलिंग :- इसे कॉस्मेटिक या टूथ कलर फिलिंग
भी कहते हैं। इसे बॉन्डिंग टेक्निक और लाइट क्योर मैथड से तैयार
किया जाता है।
*तरीका :- पहले कैविटी कटिंग की जाती है , फिर सरफेस
को फॉस्फेरिक एसिड के साथ खुरदुरा किया जाता है। इससे
सरफेस एरिया बढ़ने के अलावा मटीरियल अच्छी तरह सेट
हो जाता है। इसके बाद मटीरियल भरा जाता है। छोटी -
छोटी मात्रा में कई बार मटीरियल भरा जाता है। हर बार करीब
30 सेकंड तक एलईडी लाइट गन की नीली रोशनी से उसे
पक्का किया जाता है। इसके बाद उभरी सतह को घिसकर शेप
दी जाती है और पॉलिशिंग होती है। फिलिंग कराने के तुरंत बाद
खा सकते हैं।
फायदे :- यह टूथ कलर की होती है। देखने में
पता भी नहीं चलता कि फिलिंग की गई है। यह ज्यादा टिकाऊ
होती है। अब नैनो तकनीक का मटीरियल आने से यह फिलिंग और
भी बेहतर हो गई है।
नुकसान :- फिलिंग कराते हुए दांत सूखा होना चाहिए ,
वरना मटीरियल निकलने का डर होता है। बच्चों में यह फिलिंग
नहीं की जाती। आमतौर पर उन्हीं दांतों में की जाती है , जिनसे
खाना चबाते हैं।
जीआईसी फिलिंग :- इसका पूरा नाम ग्लास इनोमर सीमेंट
फिलिंग है। यह ज्यादातर बच्चों में या बड़ों में कुछ सेंसेटिव
दांतों में की जाती है। इसमें सिलिका होता है। यह
हल्की होती है , इसलिए चबाने वाले दांतों में यह फिलिंग
नहीं की जाती। फिलिंग कराने के एक घंटे बाद तक कुछ न
खाना बेहतर रहता है।
तरीका :- यह सेल्फ क्योर और लाइट क्योर , दोनों तरीकों से
लगाई जाती है।
फायदे :- इसमें मौजूद फ्लोराइड आगे कीड़ा लगने से रोकता है ,
इसलिए इसे प्रिवेंटिव फिलिंग भी कहा जाता है।
नुकसान :- यह होती तो सफेद ही है , पर दांतों के रंग से मैच न करने
से देखने में अच्छी नहीं लगती और सभी दांतों में इसे
नहीं भरा जाता। चबाने वाले और सामने वाले दांतों में इसके
इस्तेमाल से बचा जाता है क्योंकि यह ज्यादा मजबूत नहीं होती।
वैसे , अब जीआईसी फिलिंग में भी दांतों के रंग के शेड आने लगे हैं।
* कब निकल जाती है फिलिंग :-
जब कैविटी की शेप और साइज ठीक न हो
जब कैविटी काफी बड़ी हो
जब फिलिंग को पूरा सपोर्ट न मिला हो
जब सही मटीरियल और तकनीक इस्तेमाल न की गई हो
जब फिलिंग कराते हुए दांत सूखा न रहा हो , उसमें लार आ गई हो
जब दांत और फिलिंग के बीच गैप आने से माइक्रो लीकेज हो जाए
फिलिंग से जुड़े दो और जरूरी पहलू
1. फिलिंग कराने के बाद कई बार दांत में सेंसिटिविटी आ
जाती है यानी उस दांत पर ठंडा या गर्म महसूस होने लगता है।
लेकिन यह कुछ दिनों में ठीक न हो तो डॉक्टर को दिखाएं।
2. फिलिंग कराने के बाद कीड़ा बढ़ता नहीं है लेकिन कई बार
थोड़ी - बहुत लीकेज हो सकती है तो कई बार फिलिंग के नीचे
ही कीड़ा लग जाता है। ऐसे में अगर फिलिंग पुरानी हो गई है
तो हर 6 महीने में चेक करानी चाहिए।
रूट कनाल :-
* जब कीड़ा काफी बढ़ जाता है , दांत में गहरा सूराख कर देता है
और जड़ों तक इंफेक्शन फैल जाता है तो रूट कनाल किया जाता है।
जिन टिश्यूज में इंफेक्शन हो गया है , उन्हें स्टरलाइज्ड करके दांत में
एक मटीरियल भर दिया जाता है , ताकि वह बरकरार रहे।
यानी दांत ऊपर से पहले जैसा ही रहता है और काम करता है ,
जबकि दांत की ब्लड सप्लाई काट देते हैं। इससे कोई नुकसान
नहीं होता। हां , दांत में इंफेक्शन या किसी और
बीमारी की आशंका खत्म हो जाती है। इस प्रक्रिया में अक्सर
दांत के टूटने की आशंका बढ़ जाती है , इसलिए जरूरी है कि दांत
पर क्राउन लगाया जाए। इससे दांत का फ्रेक्चर भी रुकता है , लुक
भी पहले जैसा बना रहता है। कभी - कभी रूट कनाल फेल
भी हो जाती है। उसमें पस पड़ जाती है , तब डॉक्टर तय करता है
दांत निकालें या नहीं। ऐसी स्थिति में फिर से इलाज
किया जाता है। इस पूरे प्रॉसेस में चार - पांच सिटिंग लगती हैं।
* सांस में बदबू :-
* 95 फीसदी मामलों में मसूड़ों और दांतों की ढंग से सफाई न होने
और उनमें सड़न व बीमारी होने पर मुंह से बदबू आती है। कुछ
मामलों में पेट खराब होना या मुंह की लार
का गाढ़ा होना भी इसकी वजह होती है। प्याज और लहसुन
आदि खाने से भी मुंह से बदबू आने लगती है।
इलाज :- लौंग , इलायची चबाने से इससे छुटकारा मिल जाता है।
थोड़ी देर तक शुगर - फ्री च्यूइंगगम चबाने से मुंह की बदबू के
अलावा दांतों में फंसा कचरा निकल जाता है और मसाज
भी हो जाती है। इसके लिए बाजार में माउथवॉश भी मिलते हैं।
पायरिया :-
* मुंह से बदबू आने लगे , मसूड़ों में सूजन और खून निकलने लगे और चबाते
हुए दर्द होने लगे तो पायरिया हो सकता है। पायरिया होने पर
दांत के पीछे सफेद - पीले रंग की परत बन जाती है। कई बार
हड्डी गल जाती है और दांत हिलने लगता है।पायरिया की मूल
वजह दांतों की ढंग से सफाई न करना है।
इलाज -: पायरिया का सर्जिकल और नॉन सर्जिकल दोनों तरह
से इलाज होता है। शुरू में इलाज कराने से सर्जरी की नौबत
नहीं आती। क्लीनिंग , डीप क्लीनिंग ( मसूड़ों के नीचे ) और फ्लैप
सर्जरी से पायरिया का ट्रीटमंट होता है।
दांत निकालना कब जरूरी :-
* दांत अगर पूरा खोखला हो गया हो , भयंकर इन्फेक्शन
हो गया हो , मसूड़ों की बीमारी से दांत हिल गए
हों या बीमारी दांतों की जड़ तक पहुंच गई हो तो दांत
निकालना जरूरी हो जाता है।
ब्रश करने का सही तरीका :-
* यों तो हर बार खाने के बाद ब्रश करना चाहिए लेकिन
ऐसा हो नहीं पाता। ऐसे में दिन में कम - से - कम दो बार ब्रश जरूर
करें और हर बार खाने के बाद कुल्ला करें। दांतों को तीन - चार
मिनट ब्रश करना चाहिए। कई लोग दांतों को बर्तन की तरह
मांजते हैं , जोकि गलत है। इससे दांत घिस जाते हैं। आमतौर पर लोग
जिस तरह दांत साफ करते हैं , उससे 60-70 फीसदी ही सफाई
हो पाती है।
* दांतों को हमेशा सॉफ्ट ब्रश से हल्के दबाव से धीरे - धीरे साफ
करें। मुंह में एक तरफ से ब्रशिंग शुरू कर दूसरी तरफ जाएं। बारी -
बारी से हर दांत को साफ करें। ऊपर के दांतों को नीचे की ओर
और नीचे के दांतों को ऊपर की ओर ब्रश करें। दांतों के बीच में फंसे
कणों को फ्लॉस ( प्लास्टिक का धागा ) से निकालें। इसमें 7-8
मिनट लगते हैं और यह अपने देश में ज्यादा कॉमन नहीं है। दांतों और
मसूड़ों के जोड़ों की सफाई भी ढंग से करें। उंगली या ब्रश से धीरे -
धीरे मसूड़ों की मालिश करने से वे मजबूत होते हैं।
जीभ की सफाई जरूरी :- जीभ को टंग क्लीनर और ब्रश , दोनों से
साफ किया जा सकता है। टंग क्लीनर का इस्तेमाल इस तरह करें
कि खून न निकले।
कैसा ब्रश सही :- ब्रश सॉफ्ट और आगे से पतला होना चाहिए।
करीब दो - तीन महीने में या फिर जब ब्रसल्स फैल जाएं , तो ब्रश
बदल देना चाहिए।
टूथपेस्ट की भूमिका :- दांतों की सफाई में टूथपेस्ट
की ज्यादा भूमिका नहीं होती। यह एक मीडियम है ,
जो लुब्रिकेशन , फॉमिंग और फ्रेशनिंग का काम करता है।
असली एक्शन ब्रश करता है। लेकिन फिर भी अगर टूथपेस्ट
का इस्तेमाल करें , तो उसमें फ्लॉराइड होना चाहिए। यह दांतों में
कीड़ा लगने से बचाता है। पिपरमिंट वगैरह से ताजगी का अहसास
होता है। टूथपेस्ट मटर के दाने जितना लेना काफी होता है।
पाउडर और मंजन :- टूथपाउडर और मंजन के इस्तेमाल से बचें।
टूथपाउडर बेशक महीन दिखता है लेकिन काफी खुरदुरा होता है।
टूथपाउडर करें तो उंगली से नहीं , बल्कि ब्रश से। मंजन इनेमल
को घिस देता है।
दातुन -: नीम के दातुन में बीमारियों से लड़ने की क्षमता होती है
लेकिन यह दांतों को पूरी तरह साफ नहीं कर पाता। बेहतर विकल्प
ब्रश ही है। दातुन करनी ही हो तो पहले उसे अच्छी तरह चबाते रहें।
जब दातुन का अगला हिस्सा नरम हो जाए तो फिर उसमें दांत
धीरे - धीरे साफ करें। सख्त दातुन दांतों पर जोर - जोर से रगड़ने से
दांत घिस जाते हैं।
माउथवॉश :- मुंह में अच्छी खुशबू का अहसास कराता है। हाइजीन
के लिहाज से अच्छा है लेकिन इसका ज्यादा इस्तेमाल
नहीं करना चाहिए।
* नींद में दांत पीसना :-
वजह :- गुस्सा , तनाव और आदत की वजह से कई लोग नींद में दांत
पीसते हैं। इससे आगे जाकर दांत घिस जाते हैं।
बचाव :- नाइटगार्ड यूज करना चाहिए।
स्केलिंग और पॉलिशिंग :-
* दांतों पर जमा गंदगी को साफ करने के लिए स्केलिंग और फिर
पॉलिशिंग की जाती है। यह हाथ और अल्ट्रासाउंड मशीन
दोनों तरीकों से की जाती है। चाय - कॉफी , पान और तंबाकू
आदि खाने से बदरंग हुए दांतों को सफेद करने के लिए ब्लीचिंग
की जाती है। दांतों की सफेदी करीब डेढ़ - दो साल टिकती है
और उसके बाद दोबारा ब्लीचिंग की जरूरत पड़ सकती है।
चेकअप कब कराएं :-
* अगर कोई परेशानी नहीं है तो कैविटी के लिए अलग से चेकअप
कराने की जरूरत नहीं है लेकिन हर छह महीने में एक बार
दांतों की पूरी जांच करानी चाहिए।
मुस्कुराते रहें :-
* मुस्कराहट और अच्छे व खूबसूरत दांतों के बीच दोतरफा संबंध है।
सुंदर दांतों से जहां मुस्कराहट अच्छी होती है , वहीं मुस्कराहट से
दांत अच्छे बनते हैं। तनाव दांत पीसने की वजह बनता है , जिससे
दांत बिगड़ जाते हैं। तनाव से एसिड भी बनता है ,
जो दांतों को नुकसान पहुंचाता है।
बच्चों के दांतों की देखभाल
छोटे बच्चों के मुंह में दूध की बोतल लगाकर न सुलाएं।
चॉकलेट और च्यूइंगम न खिलाएं। खाएं भी तो तुरंत कुल्ला करें।
बच्चे को अंगूठा न चूसने दें। इससे दांत टेढ़े - मेढ़े हो जाते हैं।
डेढ़ साल की उम्र से ही अच्छी तरह ब्रशिंग की आदत डालें।
छह साल से कम उम्र के बच्चों को फ्लोराइड वाला टूथपेस्ट न दें।

ह्रदय (दिल):-

ह्रदय (दिल):-


ये याद रखिये की भारत मैं सबसे ज्यादा मौते
कोलस्ट्रोल बढ़ने के कारण हार्ट अटैक से होती हैं।
आप खुद अपने ही घर मैं ऐसे बहुत से लोगो को जानते होंगे
जिनका वजन व कोलस्ट्रोल बढ़ा हुआ हे।
अमेरिका की कईं बड़ी बड़ी कंपनिया भारत मैं दिल के
रोगियों (heart patients) को अरबों की दवाई बेच रही हैं !
लेकिन अगर आपको कोई तकलीफ हुई तो डॉक्टर
कहेगा angioplasty (एन्जीओप्लास्टी) करवाओ।
इस ऑपरेशन मे डॉक्टर दिल की नली में एक spring डालते हैं जिसे
stent कहते हैं।
यह stent अमेरिका में बनता है और इसका cost of production
सिर्फ 3 डॉलर (रू.150-180) है।
इसी stent को भारत मे लाकर 3-5 लाख रूपए मे बेचा जाता है व
आपको लूटा जाता है।
डॉक्टरों को लाखों रूपए का commission मिलता है इसलिए व
आपसे बार बार कहता है कि angioplasty करवाओ।
Cholestrol, BP ya heart attack आने की मुख्य वजह है,
Angioplasty ऑपरेशन।
यह कभी किसी का सफल नहीं होता।
क्यूँकी डॉक्टर, जो spring दिल की नली मे डालता है वह
बिलकुल pen की spring की तरह होती है।
कुछ ही महीनो में उस spring की दोनों साइडों पर आगे व पीछे
blockage (cholestrol व fat) जमा होना शुरू हो जाता है।
इसके बाद फिर आता है दूसरा heart attack ( हार्ट अटैक )
डॉक्टर कहता हें फिर से angioplasty करवाओ।
आपके लाखो रूपए लुटता है और आपकी जिंदगी इसी में निकल
जाती हैं।

Wednesday, January 28, 2015

Volunteers wanted for research into homeopathy in UK

Posted: 27 Jan 2015 06:06 AM PST

Posted: 26 Jan 2015 06:39 AM PST
The Stats Guy  – A blog about statistics, medicine, science, and other stuff Adam Jacobs planning a research project to explore the experiences of people who have used homeopathy, and if you have used homeopathy yourself then I would be really...

This is a content summary only...click on the above link for more interesting useful details...
Posted: 26 Jan 2015 06:03 AM PST
A social media campaign asking people to nominate leading women in global health is underway with 100 women nominated so far. A list of leading women working in global health is being compiled by people around the world who are nominating their...

This is a content summary only...click on the above link for more interesting useful details...

9 Dos and Don'ts of Dieting With Diabetes

9 Dos and Don'ts of Dieting With Diabetes

Slimming down can help get your blood sugar levels back into the
normal range, and in some cases even cut down on or eliminate the need
for medication. Easier said than done? Boost your odds of long-term
success by following these expert tips.

Fitness Tips for Beginner Athletes
1. DO mentally prep yourself.

"Losing weight is more like a marathon than a sprint; you can't go as
hard as you can for a short period and then stop," says Michael
Dansinger, MD, director of Lifestyle Coaching for Diabetes Weight Loss
at Tufts Medical Center and nutrition doctor for NBC's The Biggest
Loser. "If you're not ready, any changes you make aren't going to be
sustainable."

To find the motivation you need to keep going and going, Dansinger
suggests comparing where your current habits are taking you to where
you'd rather be in 5 years. Will you have diabetes-related
complications? Or will you be healthier than you are today? The
decisions you make now can shape your future.
2. DON'T go overboard.

You're more likely to stick with it if you start small, says Carolyn
Brown, RD, a nutritionist at Foodtrainers in New York.

"Your first step might be aiming for an extra 15 minutes of exercise,
or skipping the after-dinner treats," she says. "Commit to two new
things per week, and build on them."
3. DO some detective work.

Tracking everything you eat and drink for at least a week is the best
way to detect patterns.

"You might find that you graze a lot more throughout the day than you
realized, or that you often forget to eat breakfast," Brown says. You
can use an app or pen and paper, whichever you prefer.

What's Causing My Low Thyroid Level?

What's Causing My Low Thyroid Level?

Autoimmune disease, surgery, and radiation treatment are possible
reasons why your thyroid gland isn't making enough thyroid hormone to
meet your body's needs. The good news is that whatever the cause,
medicine can get your hypothyroidism under control.

Hashimoto's Thyroiditis

This is the most common reason for low thyroid levels in the U.S. It's
an autoimmune disease, meaning your immune system mistakenly attacks
your body's own healthy cells. In this case, the immune system
destroys the cells needed to make thyroid hormone.

Surgery on the Thyroid Gland

You can get hypothyroidism if you've had surgery to remove part or all
of your thyroid gland. It's sometimes done if you have a growth on
your thyroid or if it's making too much hormone.

Getting the entire thyroid gland removed always leads to
hypothyroidism. For some people, if only part of it is taken out, the
part that's left may still be able to make enough thyroid hormone. But
for others, even partially removing the gland will lead to low thyroid
levels.

Treatment With Radiation

Radiation can damage the cells that make thyroid hormone. You might
get treated with radiation for:

    Overactive thyroid gland
    Cancer of the head or neck
    Hodgkin's disease or lymphoma (cancer of the lymph system)

Thyroid Swelling (Inflammation)

A bacterial or viral infection can make your thyroid gland swell. This
is called thyroiditis. The damaged thyroid leaks its hormone into your
blood, which causes your thyroid hormone level to rise for a short
period of time. Once that hormone has been used up, your thyroid
hormone levels will drop. Low levels from thyroiditis often don't last
long, because your thyroid hasn't been permanently damaged.

Sometimes women get thyroiditis after they give birth, a condition
known as postpartum thyroiditis. It's thought to be an autoimmune
disease, much like Hashimoto's thyroiditis.

Medicines

Some medicines can affect how your thyroid works and lead to low
hormone levels. These include:

    Lithium, used for bipolar disorder and depression
    Interferon alpha, which treats cancer
    Amiodarone (Cordarone, Pacerone), a treatment for heart rhythm problems
    Interleukin-2, used for kidney cancer
Too Little or Too Much Iodine

Your thyroid gland needs iodine to make its hormone. You get iodine
from many of the foods you eat.  Not getting enough is rare in the
U.S., because it's added to table salt and other foods. The problem is
more common in developing countries.

You can also have a low thyroid level from getting too much iodine.
When there is too much of it in your thyroid, it can block the gland
from making its hormone. It can also lead to an overactive thyroid.

Hypothyroidism at Birth

Sometimes babies are born with a missing or poorly formed thyroid
gland. This is called congenital hypothyroidism.

Damage to the Pituitary Gland

Less often, low thyroid level is caused by a problem outside the
gland. The culprit may be the pituitary gland at the base of the
brain, which directs your thyroid to make its hormone. If the
pituitary gland is damaged from a tumor, surgery, or radiation, it may
not be able to give instructions to the thyroid.